चोटी की पकड़–114

"यह तो यों भी है। आप हमारे घर हैं। आपको नहीं मालूम, हम ऐसी हालत में आपके दोस्त रहेंगे या दुश्मन।"


"सही।"

"आपकी हमारी बातचीत पक्की, मगर राजा साहब से हमारा भेद न खुले।"

"हम ऐसा काम नहीं करते। भेद एक ही है हमारा। उससे आपको फ़ायदा होगा। आप अपनी परिचारिका से समझ लें, जो हमको ले आई है। 

फिर हमारे काम से, जो हर तरह नेकचलनी का है, आप मददगार हों; राजा साहब भी हैं; आपकी और उनकी पटरी इस तरह बैठ जाएगी।"

"मदद की सूरत क्या हो?"

"आपके यहाँ हमारे केंद्र हैं, देशी कारोबार बढ़ाने के; आप महिला होने के कारण उनकी स्वामिनी; गृहलक्ष्मी शब्द का उपयोग आप ही लोगों के लिए होता है; 

आप उसकी चारुता बढ़ाने, प्रसार करने में सहायता करें। देश में विदेशी व्यापारियों के कारण अपना व्यवसाय नहीं रह गया। हम उन्हीं के दिए कपड़े से अपनी लाज ढकते हैं; 


उन्हीं के आईने से मुँह देखते हैं; उन्हीं के सेंट, पौडर, लेवेंडर, क्रीम लगाते हैं; उन्हीं के जूते पहनते हैं; उन्हीं की दियासलाई से आग जलाते हैं। ब्राह्राण की आग गईं; क्षत्रिय का वीर्य गया; वैश्य का व्यापार चौपट हुआ।

 यह सब हमको लेना है। इसी के रास्ते हम हैं। बंगभंग एक उपलक्ष्य है। दूसरे प्रांत अभी बहुत नाग्रत नहीं, तो कांग्रेस में सभी हैं, यह स्वदेशीवाला भाव हमको घर-घर फैलाना है। 

आप गृहलक्ष्मी तभी हैं। इस समय रानी होकर भी दासी हैं। आपके घर की तलाशी ली जाएगी तो अधिकांश माल विदेशी होगा।

 आप इसी में हमारी मदद करें। आपकी सहानुभूति भी हमारे लिए बहुत है।"

मुन्ना खुश हो गई। रानी साहिबा दासी हैं, उसको बहुत अच्छा लगा। उसमें रानी का सही स्वत्व आया। वह तन गई।

प्रभाकर कहते गए, "और यहीं से इस उलझन का खात्मा नहीं हो जाता। अर्थशास्त्र की उलझनदार बड़ी-बड़ी बातें हैं, दूसरे मुल्कों से हमारे क्या संबंध रह गए हैं, 

हम कितने फायदे और कितने घाटे में रहते हैं, बैंक क्या हैं, कारोबार की क्या दशा है, यह सब एक मुद्दत की पढ़ाई के बाद समझ में आता है। 

राज्य और राजस्व बिगड़ा हुआ है। इस प्रकार कभी हमारा उत्थान नहीं हो सकता। जाति की नसों में राजनीतिक खून दौड़ाकर एक राजनीतिक जातीयता लाने में कितना श्रम चाहिए, इसका अनुमान आप लगा सकती हैं। मैं आपका एक ऐसा ही सेवक हूँ।"

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